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पत्रकारों पर हमला संज्ञेय अपराध, पांच साल सजा होनी चाहिए : चेयरमैन प्रेस काउंसिल

By दिल्ली : 4 अगस्त

Published on 04 Aug, 2015 11:04 PM.

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन न्‍यायमूर्ति सीके प्रसाद ने कहा है कि आंकड़ों के हिसाब से पत्रकारों पर हमले की घटनाएं बढ़ी नहीं हैं। पीसीआई की एक उप समिति ने इस तरह की धममियों से निपटने के लिए कानून संबंधी अपनी सिफारिशें दे दी हैं। पत्रकार पर उसके काम को लेकर किया गया हमला काफी गंभीर मामला है। इसे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में लाया जाना चाहिए। हमने इस अपराध के लिए पांच साल की सजा की सिफारिश की है। उन्होंने कहा कि इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया को भी पीसीआई के तहत लाया जाना चाहिए। प्रसाद ने कहा कि यदि कोई आपको थप्‍पड़ मारे तो आपको वह ज्‍यादा खराब लगेगा बजाय इसके कि वह आपका मोबाइल चुरा ले। मेरे कहने का आशय यह है कि मोबाइल की चोरी तो एक संज्ञेय अपराध है लेकिन किसी व्‍यक्ति पर हमला करना इस श्रेणी में नहीं आता है। यदि कार्य के दौरान किसी पत्रकार को धमकाया जाता है अथवा उस पर हमला होता है तो इसे भी संज्ञेय अपराध की श्रेणी में लाया जाना चाहिए। हमने इस अपराध के लिए पांच साल की सजा की सिफारिश की है। जब उनसे पूछा गया कि क्या मानहानि को दंडात्‍मक अपराध बनाया जाना चाहिए, तो प्रसाद का जवाब था कि मानहानि का दायरा बहुत बड़ा है। कोई व्‍यक्ति एक मुकदमा केरल में दर्ज करता है जबकि दूसरा असम में, इसी से समस्‍या उत्‍पन्‍न होती है। इसके लिए गाइडलाइन होनी चाहिए। यदि मानहानि का कोई एक आर्टिकल प्रकाशित हुआ है तो कोई व्‍यक्ति सिर्फ एक ही स्‍थान पर मुकदमा दर्ज कर सके। कानून को इस बारे में विचार करना चाहिए कि केस वहीं दायर किया जाएगा जहां पर आर्टिकल प्रकाशित हुआ है। मानहानि के किसी एक आर्टिकल को लेकर आप किसी पत्रकार से 30 स्‍थानों पर जाने को नहीं कह सकते हैं। लेकिन आप नागरिकों के अधिकारों में भी कटौती नहीं कर सकते हैं। ऐसे में आपको प्रयास करने होंगे कि ऐसे मामलों को एक साथ रखा जाए।
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